राजस्थान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त करने के लिए देश भर में गोलीकांड, तोडफोड आगजनी के लिए चर्चित गुर्जर आन्दोलन एक आर फिर सुलगने लगा है। इस आन्दोलन ने राजस्थान और दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से दूर करने में प्रमुख भूमिका निभाई और इस बार यह कांग्रेस की राज्य व केन्द्र सरकार पर भारी पड सकता है। पिछले दो वर्षों सेे प्रारंभ हुए गुर्जर आरक्षण आन्दोलन ने कई राजनेताओं को अपनी आग की लपटों से घेरा है। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया ने कभी सपने में भी नही सोचा होगा कि समधिन बनकर गुर्जरों के समर्थन से प्राप्त होने वाली सत्ता के छिनने का कारण भी उनके गुर्जर रिश्तेदार ही बनेंगे। यह आरक्षण आन्दोलन वसुंधरा सरकार के लिए ‘न खुदा मिला न बिसाले सनम‘ वाली कहावत को चरितार्थ कर गया। राजस्थान की करीब 11 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले मीणा समाज के नेताओं ने गुर्जरों को अनूसूचित जनजाति में शामिल किए जाने का जोरदार विरोध किया था, जिसके कारण उनके प्रमुख नेता व सरकार में मंत्री डाॅ किरोडी लाल मीणा ने मंत्री पद और भाजपा को छोड दिया था। दूसरी तरफ भाजपा विधायक अतर सिंह भडाना, प्रहलाद गुजन हित करीब एक दर्जन प्रमुख गुर्जर नेता भाजपा से अलग हो गए और उन्होनें खुलकर बगावत शुरू कर दी थी। दोनों बार के इस आन्दोलन में एक सौ के करीब गुर्जर आन्दोलनकारी पुलिस की गोली से मारे गए। गुर्जर आन्दोलन की अगुवाई करने वाले कर्नल किरोडी सिह बैंसला ने भी खुलकर भाजपा के पक्ष में सभाएं की, परन्तु वे गुर्जर समाज के लोगों में अंदर-अंदर जल रही बदले की आग को शांत नहीं कर सके। राजस्थान,मध्यप्रदेश और दिल्ली के गुर्जरों ने वसंुधरा सरकार की बुलेट (गोली)का बदला बैलेट (मतदान) के जरिए चूकाया और वसुन्धरा सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। इसी प्रकार राजस्थान के मंत्री नाथूसिहं गुर्जर एंव मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री व पूर्व आईपीएस अधिकारी रूस्तम सिंह को भी गुर्जरों ने हरा दिया। दूसरी तरफ मीणा समाज ने भी भाजपा के खिलाफ जमकर बदले की भावना से मतदान किया और भाजपा से बागी हुए डाॅ किरोडी लाल मीणा, उनका पत्नी गोलमा देवी, सहयोगी प्रसादी लाल मीणा सहित पाच लोगों को विधानसभा में पहुचा दिया। राजस्थान में मीणाओं के किरोडी गुर्जरों के किरोडी पर भारी पडे। नव निर्वाचित अशोक गहलोत सरकार में अब गोलमा देवी राज्यमंत्री बनकर भाजपा नेताओं की आखों की किरकिरी बनी हुई हैं। अतरंग सूत्रों का कहना है कि कर्नल बैंसला ने पुराने सहयोगियों व प्रमुख गुर्जर नेताओ से संपर्क करके पुनः आन्दोलन की रूपरेखा तैयार की है। वसंुधरा सरकार द्वारा दिये गये 5 प्रतिशत विश्ेाष आरक्षण को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। करीब पाच महीने से यह राजभवन में मजुरी के लिए लंबित है। राजस्थान के गुर्जर नेताओ ने अब राजभवन के घेराव की घोषणा की है। उनका कहना है कि अब राज्य और केन्द्र में कांगे्रस की सरकार है परन्तु फिर भी विश्ेाष आरक्षण के प्रस्ताव को राज्यपाल ने मंजूरी नही दी है। गुर्जर नेताओ का मानना है कि लोकसभा चुनाव से पूर्व वे कांग्रेस पर दवाब बनाकर इस प्रस्ताव को मंजूर करवा सकते है, वरना लोक सभा चुनावों के बाद यह खटाई में पड सकता है। गुर्जर आरक्षण की यह आग पुनः सुलग रही है और चुनाव से पूर्व यह और तेज भडक सकती है। अब देखना यह है कि राजस्थान और दिल्ली में भाजपा को नुकसान पहुचाने वाला गुर्जर आन्दोलन, कांगे्रस व यूपीए गठबंधन को किस प्रकार घेरता है।देश के प्रमुख हिस्सांे के रेल व सडक मार्गो को दो बार ध्वस्त करने वाला यह आन्दोलन तीसरी बार क्या रूप लेता है और कांग्रेस की केन्द्र व राजस्थान सरकारे इस पर किस तरह काबू पाती है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा हम बुलबुलें हैं उसकी वो गुलसिताँ हमारा। परबत वो सबसे ऊँचा हमसाया आसमाँ का वो संतरी हमारा वो पासबाँ हमारा। गोदी में खेलती हैं जिसकी हज़ारों नदियाँ गुलशन है जिनके दम से रश्क-ए-जिनाँ हमारा। मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।- मुहम्मद इक़बाल
Saturday, March 7, 2009
गुर्जर फिर हुए आग बबूला
राजस्थान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त करने के लिए देश भर में गोलीकांड, तोडफोड आगजनी के लिए चर्चित गुर्जर आन्दोलन एक आर फिर सुलगने लगा है। इस आन्दोलन ने राजस्थान और दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से दूर करने में प्रमुख भूमिका निभाई और इस बार यह कांग्रेस की राज्य व केन्द्र सरकार पर भारी पड सकता है। पिछले दो वर्षों सेे प्रारंभ हुए गुर्जर आरक्षण आन्दोलन ने कई राजनेताओं को अपनी आग की लपटों से घेरा है। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया ने कभी सपने में भी नही सोचा होगा कि समधिन बनकर गुर्जरों के समर्थन से प्राप्त होने वाली सत्ता के छिनने का कारण भी उनके गुर्जर रिश्तेदार ही बनेंगे। यह आरक्षण आन्दोलन वसुंधरा सरकार के लिए ‘न खुदा मिला न बिसाले सनम‘ वाली कहावत को चरितार्थ कर गया। राजस्थान की करीब 11 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले मीणा समाज के नेताओं ने गुर्जरों को अनूसूचित जनजाति में शामिल किए जाने का जोरदार विरोध किया था, जिसके कारण उनके प्रमुख नेता व सरकार में मंत्री डाॅ किरोडी लाल मीणा ने मंत्री पद और भाजपा को छोड दिया था। दूसरी तरफ भाजपा विधायक अतर सिंह भडाना, प्रहलाद गुजन हित करीब एक दर्जन प्रमुख गुर्जर नेता भाजपा से अलग हो गए और उन्होनें खुलकर बगावत शुरू कर दी थी। दोनों बार के इस आन्दोलन में एक सौ के करीब गुर्जर आन्दोलनकारी पुलिस की गोली से मारे गए। गुर्जर आन्दोलन की अगुवाई करने वाले कर्नल किरोडी सिह बैंसला ने भी खुलकर भाजपा के पक्ष में सभाएं की, परन्तु वे गुर्जर समाज के लोगों में अंदर-अंदर जल रही बदले की आग को शांत नहीं कर सके। राजस्थान,मध्यप्रदेश और दिल्ली के गुर्जरों ने वसंुधरा सरकार की बुलेट (गोली)का बदला बैलेट (मतदान) के जरिए चूकाया और वसुन्धरा सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। इसी प्रकार राजस्थान के मंत्री नाथूसिहं गुर्जर एंव मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री व पूर्व आईपीएस अधिकारी रूस्तम सिंह को भी गुर्जरों ने हरा दिया। दूसरी तरफ मीणा समाज ने भी भाजपा के खिलाफ जमकर बदले की भावना से मतदान किया और भाजपा से बागी हुए डाॅ किरोडी लाल मीणा, उनका पत्नी गोलमा देवी, सहयोगी प्रसादी लाल मीणा सहित पाच लोगों को विधानसभा में पहुचा दिया। राजस्थान में मीणाओं के किरोडी गुर्जरों के किरोडी पर भारी पडे। नव निर्वाचित अशोक गहलोत सरकार में अब गोलमा देवी राज्यमंत्री बनकर भाजपा नेताओं की आखों की किरकिरी बनी हुई हैं। अतरंग सूत्रों का कहना है कि कर्नल बैंसला ने पुराने सहयोगियों व प्रमुख गुर्जर नेताओ से संपर्क करके पुनः आन्दोलन की रूपरेखा तैयार की है। वसंुधरा सरकार द्वारा दिये गये 5 प्रतिशत विश्ेाष आरक्षण को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। करीब पाच महीने से यह राजभवन में मजुरी के लिए लंबित है। राजस्थान के गुर्जर नेताओ ने अब राजभवन के घेराव की घोषणा की है। उनका कहना है कि अब राज्य और केन्द्र में कांगे्रस की सरकार है परन्तु फिर भी विश्ेाष आरक्षण के प्रस्ताव को राज्यपाल ने मंजूरी नही दी है। गुर्जर नेताओ का मानना है कि लोकसभा चुनाव से पूर्व वे कांग्रेस पर दवाब बनाकर इस प्रस्ताव को मंजूर करवा सकते है, वरना लोक सभा चुनावों के बाद यह खटाई में पड सकता है। गुर्जर आरक्षण की यह आग पुनः सुलग रही है और चुनाव से पूर्व यह और तेज भडक सकती है। अब देखना यह है कि राजस्थान और दिल्ली में भाजपा को नुकसान पहुचाने वाला गुर्जर आन्दोलन, कांगे्रस व यूपीए गठबंधन को किस प्रकार घेरता है।देश के प्रमुख हिस्सांे के रेल व सडक मार्गो को दो बार ध्वस्त करने वाला यह आन्दोलन तीसरी बार क्या रूप लेता है और कांग्रेस की केन्द्र व राजस्थान सरकारे इस पर किस तरह काबू पाती है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
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