बेखोफ नक्सली
सरकारी आकड़ों के अनुसार पिछले दस महीनों में ही नक्सली 841 लोगों को मार चुके हैं।लोकसभा ने देश को बताया कि नक्सली पिछले दस महीनों में 841 लोगों को मार चुके हैं यानी वे प्रतिमाह 84 लोगों को मार देते हैं। एक महीने में 84 लोगों की हत्या कर देना मामूली बात नहीं होती। लेकिन नक्सली इस काम को अंजाम दिए जा रहे हैं, बेधड़क, बेखौफ और नियमित रूप से। सरकार उनकी हिम्मत से पस्त है, उनकी हिंसक वारदातों से बेजार है, उनके हमलों से अवाक है, लेकिन लाचार है कुछ कर पाने में। कोशिशें लाख की जा रही हैं, लेकिन अंजाम कुछ नहीं निकलता और नक्सली अपना काम कर निकल जाते हैं। पिछले साल 2009 में नक्सलियों ने 591 नागरिकों की हत्या की थी। सरकार से दुश्मनी करनेवाले ये नक्सली पिछले दस महीनों में 264 सुरक्षाकर्मियों को भी अपना निशाना बना चुके हैं और वह भी योजना बनाकर। वे योजनाएं बनाकर सुरक्षाकर्मियों पर हमला करते हैं, उन्हें अगवा करते हैं, उनका गला रेत देते हैं और मन में आया तो रिहा भी कर देते हैं।दूसरी ओर खुद को ग्रामीणों और गरीबों का मसीहा बतानेवाले ये नस्कली जरूरत पड़ने पर आम जनता को भी नहीं बख्शते और ग्रामीणों की हत्या कर देते हैं। सरपंचों और मुखियाओं का अपहरण कर लेते हैं और उनकी लाशों को गांवों के बीचोंबीच फेंककर गायब हो जाते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने जानकारी दी थी कि माओवादी के हाथों वर्ष 2004 से हर साल 500 से अधिक ग्रामीण लोग मारे जा रहे हैं। इनमें से अधिकांश को पुलिस का मुखबिर करार देकर उनकी हत्या की जाती है।
सरकारी आकड़ों के अनुसार पिछले दस महीनों में ही नक्सली 841 लोगों को मार चुके हैं।लोकसभा ने देश को बताया कि नक्सली पिछले दस महीनों में 841 लोगों को मार चुके हैं यानी वे प्रतिमाह 84 लोगों को मार देते हैं। एक महीने में 84 लोगों की हत्या कर देना मामूली बात नहीं होती। लेकिन नक्सली इस काम को अंजाम दिए जा रहे हैं, बेधड़क, बेखौफ और नियमित रूप से। सरकार उनकी हिम्मत से पस्त है, उनकी हिंसक वारदातों से बेजार है, उनके हमलों से अवाक है, लेकिन लाचार है कुछ कर पाने में। कोशिशें लाख की जा रही हैं, लेकिन अंजाम कुछ नहीं निकलता और नक्सली अपना काम कर निकल जाते हैं। पिछले साल 2009 में नक्सलियों ने 591 नागरिकों की हत्या की थी। सरकार से दुश्मनी करनेवाले ये नक्सली पिछले दस महीनों में 264 सुरक्षाकर्मियों को भी अपना निशाना बना चुके हैं और वह भी योजना बनाकर। वे योजनाएं बनाकर सुरक्षाकर्मियों पर हमला करते हैं, उन्हें अगवा करते हैं, उनका गला रेत देते हैं और मन में आया तो रिहा भी कर देते हैं।दूसरी ओर खुद को ग्रामीणों और गरीबों का मसीहा बतानेवाले ये नस्कली जरूरत पड़ने पर आम जनता को भी नहीं बख्शते और ग्रामीणों की हत्या कर देते हैं। सरपंचों और मुखियाओं का अपहरण कर लेते हैं और उनकी लाशों को गांवों के बीचोंबीच फेंककर गायब हो जाते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने जानकारी दी थी कि माओवादी के हाथों वर्ष 2004 से हर साल 500 से अधिक ग्रामीण लोग मारे जा रहे हैं। इनमें से अधिकांश को पुलिस का मुखबिर करार देकर उनकी हत्या की जाती है।
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