Friday, January 28, 2011

'भटकन'

भटक रहा हू
इधर से उधर,
कुछ पाने की तलाश में,
परन्तु,
वह 'कुछ'
क्या है?
नहीं जान सका हू|
और जानना भी नहीं चाहता
शायद ?
क्योकि
इस भटकन में ही
आनन्द मिलने लगा है
मुझको|
फिर जानकर  करुगा भी क्या?
जिन्होंने जान लिया है
वो क्या पार हो गये
इससे |
फिर भटकने लगे, वो
किसी दूसरे 'कुछ' की
तलाश में|
शायद नियति भी यही है|
इसलिए चाहता हू कि
भटकता ही रहू
यहाँ से वहा
इधर से उधर
किसी 'एक' की तलाश में,
कम से कम
समर्पण तो बना रहेगा,
मेरा
स्थिर|
अगर जान लिया,मेने
उस 'कुछ' को,
तो फिर भटक जाउगा
किसी अगले 'कुछ' की तलाश में
और
शायद
जीवन -भर तृप्त नहीं हो पाउगा | 

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