Friday, November 14, 2008

जे एन यू एस यू चुनावी नजरिया


सुप्रीम कोर्ट ने ३ नवम्बर को होनेवाले जे एन यू छात्र संघ के चुनाव पर अगले फैसले तक रोक लगा दी है। यह फ़ैसला जी. सुब्रमनियम की उस याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया जिसमे जे एन यू पर यह आरोप लगाया गया था की यहाँ छात्र संघ के चुनाव लिंगदोह कमिटी द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार नहीं हो रहे हैं। लिंगदोह कमिटी ने कई मानदंडों का यहाँ के चुनाव में अनुसरण नहीं किया जा रहा था जैसे उम्र की सीमा, दुबारा चुनाव नहीं लड़ना आदि। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के तुंरत बाद जे एन यू एस यू की आपात बैठक हुई जिसमे सभी छात्र संगठनों ने जे एन यू की मजबूत लोकतान्त्रिक परम्परा को कुचलने की इस कोशिश की निंदा की गयी। अगले दिन यूनिवर्सिटी की जनरल बॉडी की मीटिंग बुलाई गयी जिसमे पिछली युनियन का कार्यकाल तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया और लिंगदोह कमिटी की सिफारिशों को लागू करने के खिलाफ एक ज्वाइंट स्ट्रगल कमिटी का गठन किया गया। यह कमिटी अगले तीन महीनों में विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये इस फैसले के विरूद्ध जनमत तैयार करेगी और इसे कोर्ट में चुनौती देगी।यह सच है की अधिकांश कॉलेज और विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति हिंसा, धनबल, बाहुबल और भ्रष्टाचार के कारण असली राजनीति में जाने की प्रयोगाशालामात्र बनकर रह गयी है पर जे एन यू एक ऐसा विश्वविद्यालय है जहाँ छात्र राजनीति आज भी लोकतान्त्रिक मूल्यों को न सिर्फ़ सहेजे हुए है बल्कि दिनोंदिन उन्हें और भी सशक्त बना रही है। यहाँ के चुनाव में विश्वविद्यालय प्रशासन कोई भूमिका नही निभाता; चुनाव का पूरा संचालन छात्रों के द्वारा निर्वाचित एक स्वतंत्र और निष्पक्ष इलेक्शन कमिटी द्वारा किया जाता है। जहाँ तक धनबल और बाहुबल के प्रयोग की बात है तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की आज भी यहाँ चुनाव हाथ से बने पोस्टरों और पर्चों से लड़ा जाता है और यहाँ के चुनावी इतिहास में मारपीट की घटनाएँ उँगलियों पर गिनने लायक हैं। जे एन यू में आज तक शायद ही कभी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति चुनाव जीता हो। जे एन यू में छात्र राजनीति के कारण यहाँ शिक्षा की गुणवत्ता में कोई कमी आई हो या शैक्षिक माहौल पर कोई असर पडा हो, ऐसा भी नहीं है।आज इक्कीसवीं सदी में भी अगर जे एन यू में बी ए और एम ए जैसे कोर्सेज़ की फीस मात्र ५०० रुपये प्रतिवर्ष है तो इसके पीछे कुछ योगदान यहाँ की सशक्त छात्र राजनीति का भी है। आज अगर सुदूर पिछडे गावों के गरीब छात्र भी बिना अपने घरवालों पर कोई आर्थिक बोझ डाले विश्वा-स्तर की गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त कर पा रहे हैं तो इसके पीछे कुछ योगदान यहाँ की सशक्त छात्र राजनीति का भी है।ऐसे में सरकार और सुप्रीम कोर्ट का बिना तथ्यों और परिस्थितियों को जाने समझे एक ही डंडे का प्रयोग सबको हांकने के लिए करना सचमुच निराशाजनक है।

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