Thursday, February 24, 2011

कविता (मैं तूफानों में चलने का आदी हूं..)

मैं तूफानों में चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

हैं फूल रोकते, कांटे मुझे चलाते..
मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढाते..
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने मैं भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगे हवाएं जिससे..
तुम पथ के कण कण को तूफान करो..

मैं तूफानों में चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

फूलों से जग आसान नहीं होता है..
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है..
अवरोध नहीं तो संभव नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी..
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है..
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग ’धरा’ पर जिससे..
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो..

मैं तूफानों में चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो.

मैं पंथी तूफानो में राह बनाता..
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो..

मैं तूफानों में चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो||

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