परिधि के उस पार देखो इक नया विस्तार देखो |
तुलिकाएं हाथ में है चित्र का आकार देखो ||
रुढिया सीमा नहीं है इक नया संसार देखो |
यू न थक के हार मानो जिंदगी उपहार देखो |
उगलियाँ जब भी उठाओ स्वंय का व्यवहार देखो |
मंजिले जब खोखली हो तुम नया आधार देखो ||
हां मुझे पूरा यकीन है, स्वप्न को साकार देखो||
No comments:
Post a Comment