भर रहे है, घर भी अपना सरकार के फण्ड से
लेकिन गरीब के बच्चे मर रहे है, ठंड से
रात जाने किस तरह बीतती फुटपाथ पर
तुम बताओ जिंदगी किसके रखे हम हाथ पर
फिर भी दंडित हो रहे है सरकार के दंड से
भर रहे है............................................
आज खाने के लिए नही मिल रही है, रोटियाँ
पर निठल्ले सेठीयों की भर रही है नित कोठियाँ
किस तरह पूरा करोगे काम फिर भूत दंड से
भर रहे है..................................................
ऊँची अट्टालिका में वैभव जो पलता है,
जनता के खून का दीपक वहाँ जलता है,
हस्तियाँ उनकी मिटा दो बनकर फिर बरबंड से
भर रहे है.....................................................
चल रही है देश में अकाल की आंधियाँ
लेकिन उठाते मौज वे रखकर अनेकों बादियाँ
कब तक बच पाओगे चिंगारियों के खंड से
भर रहे है.............................................
है गरीबी हर जगह पर नजर आती नहीं,
पर अमीरों की नजर में यह कभी भाती नहीं,
आज से प्रतिपल निकल कर बात यू ब्रह्मांड से,
भर रहे है घर भी अपना सरकार के फण्ड से |
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