अभी हाल मै ही जो बरनिग मुद्दा बना हुआ है वो है तेलंगाना को लेकर आखिर क्या होगा अगर यह राज्य बन जाता है तो, दस साल बने पहले तीन राज्यों का हाल तो देखो जिनमे हमने क्या देखा है...
विडंबना यह है कि जिन उद्देश्यों के लिए इस राज्यों का गठन किया गया वह आज भी अधूरे हैं। ऐसी स्थिति में यह कहना गलत न होगा कि यदि इसी के लिए अलग राज्य बनते रहे तो आम आदमी छला ही जाएगा। इस मामले में छत्तीसगढ़ और झारखंड की भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। झारखंड के बारे में दावे कुछ भी किए जाएं, लेकिन सच यही है कि वहां भूख, गरीबी और बेकारी का साम्राज्य है। वहां की आर्थिक विकास दर लगातार पिछड़ रही है। राज्य बनने के साथ वहां दुनिया की बहुतेरी कंपनियां आई, लेकिन हुआ क्या? क्या वहां के नौजवानों को रोजगार मिले। राज्य के गठन के बाद से अब तक वहां मुख्यमंत्री ही बदलते रहे हैं और इसमें इस राज्य ने कीर्तिमान बनाया है। 5000 करोड़ से ज्यादा के घोटाले हुए है और नक्सली हिंसा से प्रभावित 24 से ज्यादा जिलों में तकरीब 1700 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। छत्तीसगढ़ माओवादी हिंसा से इस तरह त्रस्त है कि वहां का जन-जीवन अस्त-व्यस्त है। वहां कंपनियों में काम करने के लिए नवनियुक्त कर्मचारी मौत के भय से वहां जाना ही नहीं चाहते। वहां प्रशासनिक अव्यवस्था है, कानून-व्यवस्था लुंज-पुंज है और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। तीनों राज्यों से रोजगार की खातिर पलायन आज भी जारी है। यदि छोटे राज्यों के गठन के दस साल बाद भी यही हाल है तो उस हालत में और नए राज्यों के गठन से कुछ अधिक हासिल करने की उम्मीद गलत होगा |
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