Saturday, March 7, 2009

श्रीराम सेना चली नैतिकता से अनैतिकता की और

कर्नाटक के मंेगलुरू शहर के एक पब में नैतिकता के नाम पर लडकियों के साथ जो भी हुआ वह घोर अनैतिक और आपतिजनक है। इसके लिए इसकी जितनी भत्र्सना की जाए उतनी कम है। देश को सुधारने का जिम्मा क्या उन्होने लिया है? क्या सही है क्या गलत इसका फैसला वो ही करेंगे? देश में कानून कुछ नहीं है? आखिर श्रीराम सेना जैसे संगठनों के खिलाफ कारवाई कब की जायेगी और इनमें शामिल लोगो को समर्थन मिलना कब कम होगा? जिस तरह से उन्होने लडकियों के साथ बदसलूकी की इस घटना को मामूली नहीं माना जा सकता। माॅरल पुलिस की भूमिका में आई कुछ लोगो की भीड ने जिस तरह से लडकियों को पीटा, उनके बाल खीचें,कपडे फाडे और जमीन पर घसीटा इससे वह क्या साबित करना चाहते है? श्रीराम सेना वाले गुंडों ने हमारी संस्कृति के मूल तत्व को दरकिनार किया है। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता‘ (जहा नारियों की पूजा होती है वहा देवता निवास करते है ) इस घटना के बाद इस पुरी सूक्ति का अर्थ ही बदल गया है। यह सूक्ति केवल ग्रन्थों तक ही सीमित रह गई है। वहीं दूसरी तरफ श्रीराम सेना वालों ने हमारी भारतीय संस्कृति को कंलकित किया है भारतीय संस्कृति में नारी का आदर सर्वोतम है यह क्यों भूल गये श्रीराम सेना वाल ?। पब में जो कुछ चल रहा था इसकी शिकायत पुलिस विभाग को दी जा सकती थी, कानून से खेलने की क्या मजबूरी आ पडी, कानून को अपने हाथ में लेना क्या सही है? सच तो यही है कि इस घटना के पीछे कुछ राजनीतिक दलों का हाथ है वरना श्रीराम सेना की इतनी हिम्मत नहीं। देखा जाये तो इससे पहले उन्होने कभी शराब पीने वालों के खिलाफ अभियान नहीं चलाया। हम समाज में जागृति की लाख बात करे लेकिन बहुत कम ही आपको देखने को मिलेगा कि कुछ लोगो की भीड दहेज, भ्रूण हत्या या बलात्कार जैसी घटनाओं के खिलाफ सडकों पर उतरी हो। यह सच हैं की कर्नाटक में भाजपाइ राज नही होता तो ये राम सैनिक ऐसी हिम्मत नही कर सकते थे जैसा कि महाराष्ट में कांग्रेस एनसीपी का राज नही होता तो राज ठाकरे के गुण्डे उतर भारतीयों और उनके संस्थानों पर गुण्डागर्दी नहीं कर सकते थे। अलग-अलग किस्म के उग्रवादियों को अलग- अलग सरकारों से छुपी दबी सहानुभूती और समर्थन मिलता रहा है। यह एक सच्चाई है जिसे हमें स्वीकारना होगा ं। कर्नाटक और राजस्थान सरकार अगर पब संस्कृति पर रोक लगाती है तो सिद्धंातन इसमें कुछ भी बुरा नहीं लेकिन इससे यह सन्देश भी जरूर जाता है कि जो गुण्डों ने किया वह सही है। फिर सरकार को यह भी बताना चाहिए कि पब संस्कृति को लाने का निर्णय किसने लिया। बाजारीकरण का निर्णय बच्चे-बच्चियों ने नहीं किया, यह देश के राजनीतिज्ञों ने किया है। दरसल जब से देश के राजनीतिज्ञों में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण बढ़ा है उनकी नीतियों में भी जबरदस्त दोहराव आया है। यह हमारी सामाजिक विकृति ही है कि हम महिलाओं को समान अधिकार देना नहीं चाहते । देवी-देवताओं और धर्म के नाम पर संगठन बना लेने वाले ढोगी और अमर्यादित लोग इसमें सबसे आगे हैं। हम जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहे है वहंा ऐसे किसी भी संगठन को नैतिकता का ठेकेदार बनने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए। इस तरह हमें इस मामले की गंभीरता को समझकर पब में मारपीट और बदसलूकी करने वालों के खिलाफ सख्त कारवाई करके महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चत करनी चाहिए। इसके साथ-साथ केन्द्र व राज्य सरकार किसी भी संगठन को सेना शब्द के इस्तेमाल करने से रोकें। हमारे देश में एक ही सेना है वह है भारतीय सेना।

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