आर्थिक मंदी को लेकर परस्पर विरोधी संकेत मिल रहे हैं। आईएमएफ का मानना है कि दुनिया मंदी से उबरने की राह पर है। विकसित देशों की अर्थव्यवस्था के सकारात्मक दिशा में बढ़ने के आंकड़े आने लगे हैं, और विकासशील देशों की तेज विकास दर पर लगा ब्रेक भी हटता नजर आ रहा है। लेकिन आईएमएफ के उलट चीन से आई कुछ बुरी खबरें इस आकलन पर सवालिया निशान लगा रही हैं। पिछले दिनों सिर्फ दो सत्रों में उसके शेयर बाजार लगभग 10 प्रतिशत नीचे चले गए थे। शुरू में ऐसा कहा गया कि यह गिरावट कुछ विदेशी निवेशक संस्थाओं के अचानक फंड खींचने के कारण आई।
चीन के सकारात्मक आंकड़ों में सबसे बड़ा योगदान बिजली और पेट्रॉलियमकंपनियों के अच्छे प्रदर्शन का है और उसके मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के नतीजे भी काफी अच्छे रहे हैं। लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था का इंजन कहलाने वाले इस देश के सरकारी और गैर-सरकारी, दोनों ही अर्थशास्त्रियों को अब इन आंकड़ों में भी एक बड़ा झोल नजर आ रहा है। उनका कहना है कि सरकार के विशाल प्रोत्साहन पैकिज से जिन एक्सपोर्ट आधारित कंपनियों का उत्पादन बढ़ा है, वे अपना माल तो कहीं बेच नहीं पाएंगी क्योंकि जिन बाजारों में यह अब तक बिकता आया है, वहां से कोई नया ऑर्डर ही नहीं आ रहा है। चीन सरकार ने यह आशंका भी जताई है कि ज्यादा चालाक एक्सपोर्टरों और रीयल एस्टेट कारोबारियों ने अपने हिस्से आए पैकिज का इस्तेमाल उत्पादन बढ़ाने के बजाय शेयर बाजार से मोटा मुनाफा कमाने में कर लिया है। इस तरह मंदी से उबरने के लिए जो धन देश की आंतरिक मांग बढ़ाने में खर्च होना चाहिए था, उसका बड़ा हिस्सा सट्टेबाजी या गैरजरूरी उत्पादन के हवाले हो चुका है। इस खतरे की तरफ अर्थशास्त्री अप्रैल से ही इशारा करते आ रहे हैं, जब दुनिया की सारी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने मंदी के खिलाफ मिल-जुल कर कदम उठाने का फैसला किया था। अन्य देशों की तरह भारत में भी प्रोत्साहन पैकिजों का एक साल पूरा होने जा रहा है। मोटे तौर पर यह सिलसिला पिछले सितंबर-अक्टूबर से शुरू हो गया था। इसलिए भारत सरकार को भी इस बात की अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर लेनी चाहिए कि इस अवधि में उसने टैक्सों और ब्याज दरों में जिन रियायतों की घोषणा की, विशेष क्षेत्रों को केंद्रित करते हुए उनकी हौसलाअफजाई के लिए जो कदम उठाए, उनका सही इस्तेमाल हो पाया है या नहीं। इस साल 2 अप्रैल को ब्रिटेन में हुई जी-20 की बैठक का अगला चरण जल्द ही आयोजित होने वाला है। उससे पहले हमारे पास मंदी के खिलाफ अब तक की अपनी लड़ाई की सफलताओं-विफलताओं का सही आकलन मौजूद होना चाहिए। भारत के सामने एक अतिरिक्त समस्या सूखे की भी आ पड़ी है, लेकिन देश-दुनिया के लिए फिलहाल सबसे बड़ा खतरा मंदी पर विजय पा लेने की सट्टेबाज घोषणाओं का है। इनका फायदा सिर्फ शेयर बाजार के खिलाड़ियों और अफवाह का धंधा करने वालों को मिलेगा। इसलिए समय रहते राहत पैकिजों के लाभ का मूल्यांकन करना जरूरी है।
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