Wednesday, March 17, 2010

विदेशी विश्वविद्यालयों के आने की चुनौती

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस खोलने की अनुमति देने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधारों के प्रति मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के उत्साह और प्रतिबद्धता को देखते हुए यह विधेयक आने वाले महीनों में कानून बन सकता है। इसके साथ ही देश में विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश का रास्ता साफ हो जाएगा। तब भारतीय छात्र देश में ही रहते हुए ऑक्सफोर्ड या येल की डिग्री हासिल कर सकेंगे। यह एक कदम हमारे देश में उच्च शिक्षा की तस्वीर बदल सकता है। विदेशी विश्वविद्यालयों का आना सबसे पहले तो इसलिए स्वागतयोग्य है कि हमारे यहां उच्च शिक्षा संस्थानों की भारी कमी है। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने वाले केवल 12 प्रतिशत छात्र ही कॉलेजों में दाखिला ले पा रहे हैं। देश की बहुसंख्यक युवा आबादी के लिए भविष्य में जितनी बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा संस्थानों की जरूरत पड़ने वाली है, उसके हिसाब से हमारी तैयारी दयनीय ही दिखाई देती है। इस लिहाज से जहां विदेशी विश्वविद्यालय पूरक की भूमिका निभा सकते हैं, वहीं शिक्षा की गुणवत्ता की दृष्टि से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सबब बन सकते हैं। हमारे देश में वे जितने अच्छे पाठ्यक्रम और शैक्षणिक माहौल दे पाएंगे, उतने ही बेहतर छात्रों को आकर्षित करेंगे। ऐसे में श्रेष्ठ शिक्षकों, होनहार छात्रों और अच्छे नतीजों के लिए हमारे देश के शिक्षा संस्थानों को उनसे होड़ करनी होगी और अपने को लगातार बेहतर बनाना होगा।
यह वह काम है जो हमारे विश्वविद्यालयों को वैसे भी करना चाहिए, लेकिन पिछले कई वर्षो का अनुभव बताता है कि हमारे ज्यादातर शिक्षा संस्थान ज्ञान-विज्ञान का केंद्र बनने में लगातार पिछड़ते गए हैं। विदेशी विश्वविद्यालय अगर इस रुझान को पलटने में मददगार हो सकें, तो यह अच्छा ही होगा। विगत दो दशकों में दुनिया के लिए अपने दरवाजे खोलने के बाद हमने इतना आत्मविश्वास तो हासिल किया ही है कि अब हम विदेशी प्रतिस्पर्धा से तो कतराएं और भयभीत हों।
अगर भारत के उद्यमी दुनिया भर में अपने झंडे गाड़ सकते हैं, तो शिक्षा संस्थान क्यों नहीं? हमारे शिक्षा संस्थानों के पाठ्यक्रम शैक्षणिक माहौल भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप श्रेष्ठ और प्रतिस्पर्धी क्यों नहीं हो सकता? जरूरत इस बात की है कि हमारे विश्वविद्यालय आज ही से ऐसे कदम उठाएं जो उन्हें आने वाले दिनों में विदेशी संस्थानों की टक्कर में खड़ा कर सकें।

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