Monday, May 24, 2010

समाज की घुटन से दूर: जेएनयू

देश की राजधानी में कई विश्वविद्यालय हैं लेकिन 'जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय(जेएनयू) का अपना अलग ही अंदाज है। अगर हम बात करें यहां के माहौल की, पढ़ाई की, रहन सहन की, खाने पीने की और यहां के कार्यक्रमों की, तो हर मायने में यह एक अलग अंदाज रखते हैं। यहां का शांत लेकिन सब कुछ कह देने वाला वातावरण, उच्चस्तर की शिक्षा ओर अधिकांश छात्रों की राजनीति में सक्रिय भागीदारी, छात्रों को उच्च स्तरीय शिक्षा में यहां प्रवेश लेने के लिए आकर्षित करती है। हर किसी के मन में यह सवाल स्वाभाविक ही उठता है कि कैसे भी करके इस विश्वविद्यालय में दाखिला ले लूं! दिल्ली में सबसे हटकर व सुरक्षा के मामले में चाकचौबंद यह विश्वविद्यालय अपनी एक अलग पहचान लिए हुए कई विशेषताओं पर खरा उतरता है। जेएनयू एक मिसाल है देश के नवयुवकों के लिए जो अपनी जिंदगी में कुछ कर दिखाना चाहते हैं, लेकिन इसकी प्रवेश प्रक्रिया थोड़ी सी मुश्किल जरूर है। पार्थसारथी चट्टाने, चहचहाते पक्षियों का मधुर सा कोलाहल, प्राकृतिक गुफाएं, रंगबिरंगे फूल, गहरे जंगल यह सब मिलकर जेएनयू के वातावरण को एक अनुपम स्वरूप प्रदान करते हैं। जेएनयू में अधिकांश छात्र-छात्राएं हॉस्टल में रहते हैं। यही वजह है यहां की शाम दिनभर की किताबी पढ़ाई से अलग अधिक मनोरंजक व ज्ञानवर्धक होती हैं। शाम होते ही जेएनयू के प्रसिद्द गंगा ढाबा, पार्थसारथी रॉक, गोदावरी ढाबा, गोपालन जी की लाईब्रेरी कैंटीन, मामू का ढाबा, २४&७ ढाबा जैसी जगहों पर छात्रों की भीड़ देखते ही बनती है। कहीं प्रेम में तल्लीन प्रेमी जोड़े, सिगरेट के कश छोड़ते बुद्धिजीवी, हंसते खिलखिलाते दोस्तों के ग्रुप, और देश दुनिया के मुद्दों को वैचारिक बहसों में खपाते युवा जेएनयू की शाम का हाल बयान कर डालते हैं। जनवरी की सर्दी में गंगा ढाबा के पास खड़ी आइसक्रीम की रेहड़ी पर छात्राओं की भीड़ और उनके मुख पर मंद-मंद मुस्कान से जेएनयू की आनंदमयी शाम का चित्र स्वंय प्रस्तुत हो आता है। जेएनयू के झेलम छात्रावास के बाहर दोस्तों के साथ मुंबई हमले पर विवाद करते हुए एमए समाजशास्त्र के छात्र बूटासिंह के चेहरे का लाल रंग और आंखो में झलक रहा गुस्सा, आतंकवादियों के खिलाफ उनकी प्रतिक्रिया को व्यक्त करने के लिए काफी है। ये वाद विवाद, मौजमस्ती, उन्मुक्त माहौल में उमड़ते-घुमड़ते विचार वहां की रोजाना की शामों का एक अभिन्न अंग हैं। जेएनयू के मु�य द्वार से लेकर ब्रह्मपुत्र हॉस्टल तक हर जगह तैनात सुरक्षाकर्मी, सड़कों को प्रकाशमय करती स्ट्रीट लाइट इत्यादि जेएनयू की एक सक्रिय सुरक्षा व्यवस्था का प्रमाण हैं। हॉस्टल में ठीक आठ बजे खाना खाने के बाद ठहलने निकल जाना छात्रों की आदत बन चुकी है। वास्तव में जेएनयू की शाम, उसकी सुबह के मुकाबले कहीं अधिक मनोरंजक और उल्लास लिए होती है। लेकिन इस शाम का जितना आनंद इसके बारे में पढऩे में है, उससे कहीं ज्यादा उल्लास तो यहां एक शाम गुजारने में आता है।

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